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प्रसव-पश्चात अवसाद के लक्षण और उपचार।

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मांओं में अप्रसन्नता और अवसाद के कुछ सामान्य कारण:

  • एक मां बनने और शिशु के देखभाल करने की भारी जिम्मेदारी।
  • आपकी मदद के लिए पति का उपलब्ध होना जिससे आप भावनात्मक रूप से और आसानी से परेशान हो जाती हैं।
  • एक अनावश्यक और/अथवा अवांछित चिकित्सीय हस्तक्षेप जैसे कि प्रसव के दौरान इंडक्शन या फोरसेप्स का उपयोग अथवा जन्म के बाद बोतल से दूध पिलाना।
  • स्तनपान कराने के बारे में सीखना जिसे एक ज्ञात प्रक्रिया की बजाए एक समस्या के रूप में महसूस किया जाता है।
  • अस्पताल के कर्मचारियों, स्वास्थ्य कर्मियों, परिवार के लोगों, दोस्तों और अजनबियों द्वारा की जाने वाली अनेक प्रकार की नकारात्मक टिप्पणियां। ये टिप्पणियां शिशु से, आपके द्वारा चीजों से निबटने के तरीके, आपकी मातृत्व शैली, आपके घर की स्थिति, आपके द्वारा घर पर रहने या काम के लिए बाहर जाने के निर्णय, बोतल से दूध पिलाने या स्तनपान कराने से संबंधित हो सकती हैं।
  • एक अजीब सी भावना कि आप वैसी नहीं हैं जैसी आप थीं।
  • बहुत ज्यादा थकी-हारी और कमज़ोर होना।
  • यह सोचना कि चूंकि दूसरी महिलाएं चीजों से बेहतर निबट रही हैं तो आपके लिए स्थिति कुछ अलग होनी चाहिए थी और यह कि आपके साथ कुछ गलत है क्योंकि चीजें ठीक नहीं जा रहीं।

यदि आपको अवसाद होने का जोखिम है या उससे पीडित हैं तो इसकी पहचान करने के कुछ तरीके हैं:

  • अवसाद अनेक भावनाओं में से एक है जो सामान्य और स्वस्थ मांओं द्वारा अनुभव किया जाता है। ‘मां’ होना भावनात्मक रूप से एक बहुत बड़ी बात होती है, खासकर हमारे अनुभवों को औरों के द्वारा पर्याप्त महत्व नहीं दिए जाने के कारण तो यह और भी बड़ी बात हो जाती है।
  •  मांओं को अनेक प्रकार के अहसासों का सामना करना पड़ता है जिसमें कुंठा, गुस्सा, रोष, चिंता, अपराधबोध और फिक्र, असहायता, निराशा और अवसाद अथवा उदासी भरे अहसास शामिल हैं
  • यदि आपको लगता है कि आप इनमें से किसी का अहसास कर रही हैं तो आपको यह समझने की जरूरत होती है कि ये सभी अहसास जायज़ हैं। यदि आपको लगता है कि इनमें से कोई भी भावना आप पर हावी हो रही है अथवा आपके लिए असामान्य है तो आप मदद ले सकती हैं - ये स्थायी नहीं होतीं और ऐसा कतई जरूरी नहीं कि इनके लिए दवाओं की आवश्यकता पड़े।

कुछ सुझाई गई रणनीतियां जिन्हें मांएं रोजमर्रा की परिस्थितियों का सामना करने में इस्तेमाल कर सकती हैं:

  • थोड़ी नींद लें – इसका महत्व तब पता चलता है जब आप बेहद थकी हुई और क्लांत होती हैं, हालांकि रात में अच्छी तरह सोना कहीं अधिक सक्रिय करने वाला और विवेकपूर्ण होता है। यदि आपको रात में शिशु को दूध पिलाने के लिए अथवा रात में बच्चों द्वारा परेशान करने के कारण जगना पड़ता है तो आप रात को जल्दी सो जाएं; दिन के समय 30 मिनट की झपकी लें<92/> अपने घर में एक आरामदेह जगह खोजें और जब आपका शिशु सो रहा हो या आराम कर रहा हो उस समय थोड़ा सो लें।
  • अपने करीबी दोस्तों या परिजन अथवा किसी पेशेवर व्यक्ति, जो आपकी बात सुनेंगे और समझेंगे, से इस बारे में बात करें कि आपको कैसा अनुभव हो रहा है।
  • अपनी सहेलियों या परिजन से उनके मातृत्व और इससे संबंधित चीजों के अनुभवों को आपसे साझा करने के लिए कहें।
  • दिन के समय अपने मनोभावों की पहचान करें।उन भावों को इस तरह शांत करें जैसे कि आप एक परेशान छोटे बच्चे को करेंगी। उन्हें खामोश या नजरअंदाज़ न करें - इसकी सलाह तो नहीं दी जाती है लेकिन हमारे समाज में अक्सर ऐसा किया जाता है।
  • आप कैसा महसूस करना चाहती हैं यह चयन खुद करें। स्पष्टता से इसकी कल्पना करें और उस तरह महसूस करने का 100% सजग प्रयास करें। सुनिश्चित करें कि कोई भी तनावपूर्ण मनोभाव शांत किए जाएं, उन्हें दबाया न जाए, नजरअंदाज़ या खामोश न किया जाए।
  • स्वीकार करें कि आपका इस तरह महसूस करना सामान्य और अपेक्षित है। खुद के साथ कठोर लगने वाली नकारात्मक बातचीत या नकारात्मक टिप्पणियां न करें।
  • यदि आप अपने अंदरअसफलहोती हैं तो फिर से प्रयास करें। यह प्रतीत न होने दें कि ऐसा करना असंभव है।
  • मां होना हमेशा कुदरती तौर पर सहज नहीं होता बावजूद इसके कि आप स्पष्ट रूप से अपने बच्चों से प्यार करती हैं, की देखभाल करती हैं और न्हें सुरक्षित रखती हैं। हालांकि हम वह तरीका इजाद कर सकते हैं जिसके जरिए हम एक मां के रूप में अपनी अभिक्रिया देना चाहते हैं।
  • इस बात पर ध्यान केंद्रित करें कि 50 साल की अवधि में आप खुद को किस रूप में याद करना चाहती हैं। इससे आपको भविष्य में लंबे समय तक मदद मिल सकती है।
  • अपनी भावनाओं को एक डायल के रूप में देखें जिसे थोड़ा धीमा किया जा सकता है। यह कारगर होता है।
  • यदि आप उदास महसूस करती हैं तो खुद को शांत करें और उस चीज़ पर ध्यान केंद्रित करें जिसमें आप बेहतर हैं। नकारात्मक बातों पर वापस लौटने की प्रवृत्ति पर तत्क्षण रोक लगाएं। रोज अभ्यास करते हुए इसमें लगभग एक महीना लगेगा!
  • यदि आप चिंतिंत या परेशान महसूस करती हैं तो एक लिस्ट बनाकर चीजों को लिख लें, तनाव का स्तर कम करें और महसूस करें कि आप इस परिस्थिति पर काबू पा सकती हैं। खाना तैयार करने, पार्क में टहलने या घर की सफाई जैसे अधिक ऊर्जा की आवश्यकता वाले कामों पर ध्यान दें।
  • यदि आप खिन्न या क्रोधित महसूस करती हैं तो इस तथ्य पर ध्यान केंद्रित करें कि केवल आप ही अपने गुस्से की भावना को बदल सकती हैं। यह आपके लिए अच्छा नहीं है इसलिए इस पर सकारात्मक रूप से काम करें।

अपने बच्चे के साथ सुखद संबंध कायम रखने के लिए यहां कुछ सुझावों की सूची दी गई है

  • सकारात्मक चीजों पर ध्यान केंद्रित करना याद रखें। एक नकारात्मक अनुभव के लिए औसतन 5 सकारात्मक अनुभव हासिल करने का प्रयास करें। करने की तुलना में ऐसा कहना आसान है, लकिन इसे अपना लक्ष्य बनाने की कोशिश करें।
  • अपने बच्चों की सभी बहुत अच्छी चीजों और उनके साथ अपने संबंध के बार में सोचें।
  • बिना ध्यान भटकाए उन्हें पर्याप्त समय देते हुए उनके साथ फर्श पर खेलें ।
  • अपनी आंखों से अपने बच्चों को देखें और आने वाले लंबे समय तक के लिए उनकी स्मृति बनाकर संजोएं। यह मूल्यवान है।
  • उनकी भावनाओं को समझें। याद रखें कि जब हम सोचते हैं कि वेशरारतीहो रहे हैं, असहयोगी, जिद्दी या शैतान हो रहे हैं तो प्रायः वह हम ही होते हैं जो उनसे चिढ़े होते हैं क्योंकि हम जैसा चाहते हैं वे वैसा नहीं कर रहे होते। हालांकि, मां या पिता के रूप में हमें ही निर्णय लेने की आवश्यकता होती है लेकिन यदि हम अपना गुस्सा शांत रखें तो हम बेहतर निर्णय ले सकते हैं।
  • अपने बच्चों के साथ आनंद लेने के लिए रोज दो सकारात्मक चीजें ढूंढ़ें। इसमे कुछ बातें शामिल की जा सकती हैं, जैसे कि- खाने के वक्त उनके कांटा पकड़ने के तरीके को देखना और कांटे के चारों ओर उनकी उंगलियों को मुड़ते हुए देखना; उनके साथ लुका-छिपी का खेल खेलना।

याद रखें कि दिन फिर भी बीतता जाएगा, क्योंकि बच्चे बहुत से ऐसे काम करेंगे जिनसे हमें गुस्सा आएगा या हमें खुशी होगी। बावजूद इसके कि हम व्यथित या तनावग्रस्त हों यदि हम अपने दिमाग की उथल-पुथल को शांत कर लें और अपनी उग्र भावनाओं पर काबू रखें तो हम फिर भी वे सभी चीजें कर सकते हैं जिन्हें हम दिन में अधिक खुशी या संतोष और कम चिल्लाने और कम तनाव के साथ करते हैं। जिंदगी को छोटी-छोटी चीजों से ही असल मायने मिलते हैं। बाकी सब तो यूं ही हैं। हम इस समझ और जीवन के अनुभव से सीख सकते हैं।

 

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