जिस तरह से आप अपनी खुशियों की पोटली (अपने शिशु) को लेकर बेहद खुश हैं, वह (शिशु) भी आपको लेकर उतना ही खुश महसूस करता है! वे आपको देखना पसंद करते हैं जब आप फोन पर बात करते हैं, अपने बालों अथवा चश्मों से खेलते हैं तो वे आपको देखना पसंद करते हैं और इस प्रकार वे हमेशा आपके साथ किसी भी तरीके से जुड़े रहना चाहते है, भले ही वे यह नहीं समझते हों कि आप क्या कह रहे हैं। जिस तरह से आपको उनके गालों को थपथपना अच्छा लगता है उसी प्रकार उन्हें आपका बोलना अच्छा लगता है।
यहां 3 सरल उपाय दिए गए हैं जिनके माध्यम से आप अपने बच्चे से जुड़ सकते हैं और प्रभावी संचार कौशल की नींव रख सकते हैं।
आगे बढ़ें और बातचीत करना शुरू करें
अपने शिशु से बात करना थोड़ा अटपटा लग सकता है, लेकिन सच्चाई यह है कि उन्हें आपकी आवाज की ध्वनि सुनना अच्छा लगता है। शोध दर्शाता है कि नवजात शिशु ऊंची आवाज के प्रति अपेक्षाकृत अधिक संवेदनशील होते हैं, ऐसा इस वजह से हो सकता है कि शायद वे गर्भ में अपनी मां की बातें सुन सकते थे। यह बाद में भाषा के विकास की भी आधारशिला रखता है।
शिशु से बात करने से वे न केवल आपकी आवाज और चेहरे से लगाव महसूस करते हैं, बल्कि इससे वे यह भी सीखते हैं कि सामाजिक संचार के लिए सच में क्या महत्वलपूर्ण है। इसलिए, जब आप अपने शिशु से बातें करते हैं तो वे आप द्वारा दिए जा रहे संदेश को समझ सकते हैं, जैसे, “मैं आपसे प्यांर करता/करती हूं, आप मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं।”
इसलिए आगे बढ़ें और अपने शिशु से बातें करें, ये आप जो पुस्तक पढ़ रहे हैं, से लेकर बाहर के मौसम तक, कुछ भी हो सकता है।अपने शिशु से कभी भी बातचीत शुरू करना बहुत जल्दी नहीं है!
सुने और प्रतिक्रिया दें
जब तक शिशु एक या दो महीने का होता है, वह कुछ आवाजें निकालना शुरू कर देता है। शिशु “आ” अथवा “ई” कह सकता है अथवा अपनी जीभ से कोई भी आवाज निकाल सकता है। ये आवाजें कितनी भी आदिम हों, ये भाषा के विकास के प्रति पहला कदम होती हैं। माता-पिता के रूप में आप इन आवाजों की नकल करके प्रतिक्रिया दे सकते हैं। नवजात शिशु आमतौर पर आवाज को दोहराता है, और इससे पहले कि आप इसे जान पाएं, आप उससे थोड़ी-बहुत बातचीत कर रहे होते हैं! यह आपके शिशु के लिए बहुत ही आकर्षक खेल है, जो आपके साथ संचार को प्रोत्साहित करेगा।
जब शिशु बहुत अधिक थक जाते हैं, बहुत अधिक भूखे होते हैं अथवा इतने बेचैन होते हैं कि वे अब सामाजिक नहीं होना चाहते हैं तो वे इसे रो कर व्यक्त करते हैं या आपके द्वारा उन्हें व्यस्त रखने के उपायों को नज़र अंदाज़ कर देते हैं। ऐसे संकेतों के प्रति संवेदनशील रहें, और आप जल्द ही अपने शिशु की संचार करने की व्यक्तिगत शैली के बारे में सीख जाएंगे।
कोई भी समय सही समय होता है
ऐसा महसूस न करें कि आपको किसी विशेष समय पर ही अपने शिशु से बातें करनी है अथवा उसके साथ खेलना है, आप उनसे बातचीत करने के सभी अवसरों का इस्तेमाल कर सकते हैं। बातचीत करने का सबसे अच्छा समय वह होता है जब वे जागे हुए हों और सचेत हों, और ऐसा अक्सर तब होता है जब उन्हें नहलाया जाता है, उनके कपड़े बदले जाते हैं अथवा उन्हें कपड़े पहनाए जाते हैं; ये अपने शिशु के साथ घुलने-मिलने और बातचीत करने के सबसे अच्छे अवसर होते हैं।
जब आपका शिशु लेटकर आपकी ओर देख रहा होता है तो आप उससे मीठी आवाज में बात कर सकते हैं, उसके पेट को गुदगुदा सकते हैं अथवा उसके ऊपर झुक कर गुनगुना सकते हैं। उनके पसंदीदा खिलौनों को उनके आसपास रखें, इससे वे ऐसे समय में व्यस्त रहेंगे।